नमस्कार दोस्तों।।
आज हम आपको बताएंगे की IPO क्या होता है।
अगर आप भी शेयर मार्किट में निवेश करते है या फिर इससे सम्बंधित खबरों में रूचि रखते है तो आपने एक शब्द तो जरूर सुना होगा और वो है IPO. अगर बात इस साल की या इससे पिछले साल की हो तो आपने ये शब्द एक बार या दो बार नहीं बल्कि कई बार सुना होगा। हालाँकि जो लोग काफी समय से शेयर मार्किट को फॉलो करते आ रहे है उनको तो इसके बारे में जानकारी होगी लेकिन नए निवेशकों के लिए यह थोड़ा पेचीदा हो सकता है।
तो आइये आज के इस आर्टिकल हम ये जानेंगे कि IPO क्या है, इसकी जरूरत क्यों पड़ती है तथा इसके बारे में आपको क्या-क्या जानने की आवश्यकता ह।
तो आइये इसके बारे में जानते है -
Initial Public Offering (IPO) का परिचय
IPO एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक प्राइवेट कंपनी अपने स्टॉक्स आम जनता को ऑफर करते हुए पब्लिक होती है। कंपनी अपने शेयर्स जनता को देती है तथा इसके बदले में फण्ड इकठ्ठा करती है।
जो कंपनी अपने शेयर्स जनता को ऑफर करती है उसको Issuer के नाम से जाना जाता है। Issuer अपने शेयर्स एक इन्वेस्टमेंट बैंक की सहायता से ऑफर करती है। IPO के बाद कंपनी के शेयर्स की ट्रेडिंग ओपन मार्किट में शुरू हो जाती है।
Why do companies go public ?
कैपिटल रेज करने के लिए - जब भी कोई कंपनी आईपीओ के जरिए अपने शेयर्स जनता को देती है तो कंपनी को बहुत ज्यादा धनराशि मिलती है जिसका उपयोग करके कंपनी अपना विस्तार कर सकती है।
लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स - जब भी कोई पब्लिक्ली ट्रेडेड कंपनी भविष्य में किसी अन्य कंपनी के साथ किसी प्रकार की कोई डील करती है तो वह स्टॉक्स के माध्यम से भी भुगतान कर सकती है। अन्यथा कंपनी को सारी धनराशि का भुगतान कॅश के माध्यम से करना पड़ता जो काफी मुश्किल काम हो जाता।
Reputation - जब भी कोई कंपनी अपने IPO लाती है तो इससे उसकी प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है। लिस्टेड कंपनियों को ज्यादा अच्छा माना जाता है तथा उनकी मार्किट में रेपुटेशन भी अच्छी होती है।
IPO का इकॉनमी से सम्बन्ध
जब मार्किट में बहुत सारे आईपीओ आ रहे हो तो इसका मतलब यह भी हो सकता है कि स्टॉक मार्किट या इकॉनमी की हालत ठीक है।
जब भी किसी प्रकार का कोई वित्तीय संकट आता है तो उसके दौरान IPO की लिस्टिंग मंडी पड़ जाती है क्योंकि मार्किट प्राइस पहले से ही undervalued होती है। इसके विपरीत अगर बहुत सारे IPOs एक के बाद एक लांच हो रहे हो तो हम यह अंदाजा लगा सकते है कि स्टॉक मार्किट या इकॉनमी के हालत वापिस सुधर रहे है।
IPO की प्रक्रिया
किसी भी IPO के लॉच होने की प्रक्रिया में ये 5 स्टेप्स शामिल होते है -
Lead investment bank का चयन करना
IPO की प्रक्रिया की शुरुआत ही एक Lead Investment Bank के चयन से होती है। यह प्रक्रिया सामान्यतः IPO आने के 6 महीने पहले से ही शुरू हो जाती है। IPO लाने वाली कंपनी अपने रिसर्च के आधार पर एक बैंक का चयन करती है।
कंपनी को एक ऐसे इन्वेस्टमेंट बैंक की जरूरत पड़ती है जो कंपनी के शेयर्स को ज्यादा से ज्यादा अन्य बैंकों तथा Institutional Investors तथा Inviduals को बेच सकें। यह पूर्ण रूप से इन्वेस्टमेंट बैंक की जिम्मेदारी होती है कि वो किस प्रकार से सभी Buyers को एक साथ लाती है।
ये सब काम करने के लिए इन्वेस्टमेंट बैंक सामान्यतः कुल IPO सेल्स की 3 से 7% तक फीस चार्ज करती है।
इस प्रकार से एक इन्वेस्टमेंट बैंक द्वारा एक IPO को हैंडल करने की इस प्रक्रिया को Underwriting के नाम से जाना जाता है। एक बार बैंक का चयन करने के बाद कंपनी तथा बैंक आपस में एक Underwriting Agreement साइन करती है जिसमे IPO से संबंधित डिटेल्स का जिक्र होता है।
Due Diligence
किसी भी IPO की अगली प्रक्रिया Due Diligence तथा Regulatory Filings की होती है। यह प्रक्रिया आईपीओ लांच होने के तीन महीने पहले होती है। IPO की पूरी टीम जैसे Lead Investment Banker , Lawyer तथा अन्य अधिकारी Due Diligence निर्धारित करते है। सारी आवश्यक फाइनेंशियल जानकारी का पता इस टीम द्वारा लगाया जाता है।
Investment Bank सेबी के पास एक रजिस्ट्रेशन फॉर्म जमा करती है इसमें फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स, मैनेजमेंट बैकग्राउंड, तथा अन्य वैधानिक जानकारी होती है। इसमें IPO के उद्देश्य के बारे में भी जानकारी होती है। IPO के पैसे का उपयोग कहाँ किया जाएगा तथा कैसे किया जाएगा आदि के बारे में पुरी डिटेल इस स्टेटमेंट में होती है। इसमें कंपनी के बिज़नेस मॉडल तथा अन्य सम्बंधित फैक्टर भी अंकित होते है।
इसके बाद सेबी कंपनी को इन्वेस्टीगेट करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि स्टेटमेंट में लिखी सारी बातें सही है या नहीं।
Pricing
IPO की तीसरी तथा सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है - Pricing. किसी भी आईपीओ की Pricing उस कंपनी की वैल्यू तथा मार्किट व इकॉनमी की करंट स्थिति पर निर्भर करती है।
सेबी से अप्रूवल मिलने के बाद सेबी तथा कंपनी आईपीओ की तारीख का निर्धारण करते है। इसके अलावा कंपनी की फाइनेंसियल जानकारी तथा अन्य संबंधित जानकारी भी सर्कुलेट का जाती है।
कंपनी सभी Vendors के लिए एक Transition Contracts लिखती है इसमें भी कंपनी के फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स का जिक्र होता है।
आईपीओ लांच होने के तीन महीने पहले Board of Directors की मीटिंग होती है तथा Audit को रिव्यु किया जाता है। इसके बाद कंपनी उस स्टॉक एक्सचेंज से संपर्क करती है जिसके माध्यम से आईपीओ लांच होगा।
अंतिम महीने में कंपनी अपने Prospects को सेबी के पास जमा करवाती है। इसके अलावा कंपनी यह भी अनाउंस करती है कि कितने शेयर्स जनता के लिए उपलब्ध है।
Stabilization
IPO की चौथी प्रक्रिया को Stabilization के नाम से जाना जाता है। यह प्रक्रिया IPO के तुरंत बाद होती है। स्टॉक्स issue होने के बाद Underwriter इसके लिए एक मार्किट क्रिएट करता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि स्टॉक्स की कीमत को ठीक ठाक रखने के लिए पर्याप्त Buyers है या नहीं। यह प्रक्रिया 25 दिनों तक चलती है जिसे Quiet Period के नाम से जाना जाता है।
Transition
IPO की पांचवीं तथा सबसे अंतिम स्टेज को transitions के नाम से जाना जाता है जिससे मार्किट कम्पटीशन ओपन हो जाता है। Quiet Period खत्म होने के बाद यह स्टार्ट होता है। Underwriters कंपनी की Earnings की जानकारी प्रदान करते है जिससे निवेशक उसी हिसाब से निर्णय लेते है।
IPO के लांच होने के 6 महीने बाद Insider Investor अपने शेयर्स बेच देते है।
Advantages of IPOs
IPO के माध्यम से यह सुचना मिलती है कि एक कंपनी अच्छा प्रदर्शन कर रही है और कंपनी धनराशि को इकठ्ठा करके और ज्यादा नए प्रोजेक्ट्स पर काम करने वाली है तथा अपने बिज़नेस को बढ़ाना चाहती है।
शेयर्स की सहायता से विभिन्न प्रकार के Merger and Acquisitions के पेमेंट का भुगतान किया जा सकता है जिसे कैश लेनदेन से छुटकारा मिलता है।
IPO की सहायता से कोई भी कंपनी अच्छे कर्मचारियों को काम पर रख सकती है तथा IPO के दौरान कर्मचारियों को शेयर्स ऑफर करके कंपनी नए लोगों को कम Wage पर भी काम पर रख सकती है।
जब शेयर्स की कीमत में बढ़ोतरी होती है तो प्रमोटर की नेट वर्थ में भी बढ़ोतरी होती है अगर प्रोमोटर के पास कंपनी के शेयर्स है। इससे प्रोमोटर को अपनी कठिन मेहनत का फल मिलता है।
Disadvantages of IPOs
IPO की प्रक्रिया एक कंपनी के लिए बहुत महंगी पड़ती है। कंपनी का लीडर IPO की ओर ज्यादा ध्यान देता है जिससे कंपनी के नियमित कार्य पर फर्क पड़ सकता है। Investment banks भी अपनी सर्विस देने के लिए एक भारी फीस चार्ज करते है।
कंपनी के मालिक IPO लांच होने के तुरंत बाद अपने शेयर्स नहीं बेच सकते क्योंकि ऐसा करने से कंपनी के शेयर्स की कीमत में गिरावट आ सकती है।
कंपनी के बिज़नेस का कण्ट्रोल Board of Directors के पास चला जाता है और कंपनी का मालिक इसका हिस्सा हो भी सकता है और नहीं भी। Board of Directors के पास इतनी पावर होती है कि वो कंपनी के मालिक को कंपनी से निकाल भी सकते है।
कंपनी को सेबी के नियमों के अंतर्गत काम करना पड़ता है।
कंपनी के बारे में काफी सारी जानकारी जनता को पता लग जाती है।
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